Fairy Story in Hindi परी की कहानी

fairy story in hindi

 Fairy Story in Hindi परी की कहानी

जंगल के किनारे आदिवासियों की एक बस्ती थी। उस बस्ती के लोग सुबह होते ही शिकार के लिए चल पड़ते थे। उनके कुत्ते भेड़ियों की तरह लम्बे बालों वाले थे। वे शेर का भी मुकाबला करते थे। हिरण और लकड़बग्घे को दबोचना उनके लिए बड़ा आसान था। आदिवासी अपने इन कुत्तों को जान से ज्यादा प्यार करते थे।

धनवा नाम का एक किशोर इसी बस्ती में रहता था। मगर बस्ती वालों से वह दूर-दूर ही रहता था। उसके दोस्त या तो पश होते या पक्षी। धनवा का एक हाथ और एक पांव टेढ़ा था। जब वह लंगड़ाता हुआ चलता तो लड़के उसका मजाक उड़ाते। इसी बात से धनवा दुखी रहता था। उसका मन करता था कि वह गांव छोड़कर चला जाए लेकिन फिर मांबाप का ख्याल करके रुक जाता। अक्सर वह बस्ती से दूर किसी पेड़ के नीचे बैठ जाता और सारा दिन पशु-पक्षियों की आवाजें सुनता रहता। कभी सोचता कि भगवान ने मुझे ऐसा क्यों बनाया? उसे कभी गांव के लड़कों पर गुस्सा आता तो कभी वह अपनी किस्मत पर आंसू बहाने लगता।

एक दिन उसे घर लौटने में शाम हो गई। वह घने जंगल में दूर चला गया था। वहीं एक पेड़ के नीचे बैठकर वह किसी खरगोश के साथ खेलता रहा। वहां उसने कुछ नए पक्षी भी देखे। वह घर लौटने की सोच ही रहा था कि अचानक एक चमकीली चिड़िया उसके सिर पर मंडराने लगी। धनवा ने देखा चिड़िया बार-बार रंग बदल रही थी और मीठी आवाज में ची-चीं करती चक्कर काट रही थी।

धनवा से रहा नहीं गया। वह उस चिड़िया को पकड़ने के लिए उठ खड़ा हुआ। चिड़िया जिस तरफ उड़ती, वह भी उसी तरफ भागने लगता। अचानक चिड़िया की चोंच से स्त्री का स्वर सुनाई पड़ा, “मैं चमकीली परी हूं, क्या तुम मेरे साथ खेलोगे?"

धनवा बोला, "क्यों नहीं, लेकिन तुम रहती कहां हो?" चिड़िया बोली, "परी लोक में रहती हूं।"
धनवा ने अपने माता-पिता से कई बार परी लोक की कहानियां सुनी थीं। वह चिड़िया के पीछे-पीछे चल पड़ा। चिड़िया धीरे-धीरे उड़ रही थी । धनवा कभी तेज चलता तो कभी दौड़ लगाता। आखिर वह एक जगह थककर बैठ गया। चिड़िया ने उसे थका हुआ देखा तो उसे उस पर दया आ गई।

बोली, "बालक इस तरह तो तुम थककर चूर हो जाओगे। मैं तुम्हारे लिए अपने पंख फैलाती हूं। तुम उन पर बैठ जाना, फिर मैं तुम्हें उड़ाकर अपने साथ ले जाऊंगी। तुम्हें कष्ट नहीं होगा।"
धनवा आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगा। चिड़िया का आकार बड़ा होने लगा था। अब वह बहुत बड़ी दिखाई दे रही थी। धनवा मजे से उस पर बैठ गया। चिड़िया आकाश में उड़ने लगी। ऊपर और ऊपर, जहां साधारण पक्षी नहीं पहुंच पाते थे।

वह उड़ती जा रही थी। चिडिया च्या अंतरिक्ष में पहुंची तो धनवा के हाथ-पांवों में भार नहीं रहा। वह चिडिया के पंखों से गिर पड़ा और स्वयं ही आकाश में तैरने लगा। उसे लगा जैसे वह भी एक चिड़िया बन गया है। चिड़िया ने जब उसे अंतरिक्ष में तैरते हुए देखा तो चिंता में पड़ गई। सोचने लगी, "इस तरह तो यह पीछे रह जाएगा। परी लोक तो अभी बहुत यह सोच कर वह फिर पीछे की ओर मुड़ी और बोली, "बालक! मुझे कस कर पकड़ लो। अगर इसी तरह ही उड़ना चाहते हो तो मेरे साथ उड़ो।"

धनवा कुछ देर तक चिड़िया को पकड़कर उड़ता रहा और फिर उसके पंखों पर बैठ गया। चिड़िया पुनः बोली, "तुम मेरे साथ परी लोक की सैर करना लेकिन एक शब्द भी मत बोलना। अगर बोले तो परियों की रानी तुम्हें कारागार में भेज देगी। फिर तुम सारी उम्र वही सड़ते रहोगे। यह भी याद रखना कि मैं वहां जाते ही एक परी की शक्ल में बदल जाऊंगी। बस मेरे पंख दूसरी परियों से भिन्ना होंगे। उनसे रंगबिरंगी किरणें निकल रही होंगी।

इससे तुम मुझे पहचान सकोगे।" धनवा बोला, "तुम फिक्र न करो। मैं बिल्कुल नहीं बोलंगा लेकिन मुझे अपना पूरा महल अवश्य दिखाना।" चिड़िया उसे लेकर परी लोक में पहुंच गई। वहां जाते ही वह परी की शक्ल में आ गई। धनवा ने देखा वहां दूध की नदियां बह रही हैं। सेब के रस के झरने हैं। वृक्ष तरह-तरह के मीठे फलों से लदे हैं। कई पेड़ों पर मिठाइयां लटकी हुई हैं। चिड़िया परी ने धनवा को एक कुंज में छोड़ दिया और कहा, "तुम यहीं रहो, यहां तुम्हें भूख-प्यास नहीं सताएगी। बीच-बीच में मैं आया करूंगी तुम्हें परी लोक की सैर भी करा दूंगी।"

धनवा रोज पेट भर मिठाइयां खाता, फल खाता, जी भरकर दूध पीता और सेब के रस का आनंद लेता। एक दिन उसने देखा कि उसके टेढ़े हाथ और पांव बिल्कुल ठीक हो गए हैं। यह देखकर वह बड़ा खुश हुआ। कुछ दिन बाद उसे अपने माता-पिता की याद आने लगी। उसने परी से घर जाने की प्रार्थना की। परी चिडिया बन गई और उसे अपने पंखों पर बैठाकर पृथ्वी पर ले आई। वह परी लोक से अपने साथ फल भी लाई थी।

धनवा से विदा लेते समय उसने कहा, "धनवा जब तुम अपंग नहीं हो। अब कोई तुम्हारा मजाक नहीं उड़ाएगा। मैं तुम्हें परी लोक का एक फल भी एक दिन उसे घर लौटने में शाम हो गई। वह घने जंगल में दूर चला गया था। वहीं एक पेड़ के नीचे बैठकर वह किसी खरगोश के साथ
खेलता रहा। वहां उसने कुछ नए पक्षी भी देखे। वह घर लौटने की सोच ही रहा था कि अचानक एक चमकीली चिड़िया उसके सिर पर मंडराने लगी। धनवा ने देखा चिडिया बारबार रंग बदल रही थी और मीठी आवाज में चीची करती चक्कर काट रही थी।

दे रही हूं, इसे किसी पेड़ के खोखल में रख देना। तुम जितने चाहोगे उतने फल उस खोखल से निकल आया करेंगे लेकिन शर्त यह है कि प्रतिदिन बच्चों को एक-एक फल अवश्य देना, अन्यथा यह फल अपने आप उड़कर परी लोक में पहुंच जाएगा।" - इसके बाद धनवा ने परी के सामने ही वह फल एक पेड़ के खोखल में डाल दिया। इसके बाद परी धनवा से विदा लेकर अपने लोक चली गई।

कहते हैं आज भी उस पेड़ के खोखल से फल गिरते हैं लेकिन उसे केवल आदिवासी बच्चे ही खा सकते हैं। दूसरों को तो वे दिखाई भी नहीं देते। धनवा आज नहीं है लेकिन वहां एक पक्षी होता है जो 'धनवा-धनवा' की आवाजें करता हुआ उड़ा करता है।